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Friday, January 8, 2010

अतिक्रमण

Kindle Wireless Reading Device (6" Display, Global Wireless, Latest Generation)शादी, पार्टी के मौके पर बीच सडक में गढढ़े करना व टेंट लगाकर रास्ता रोक लेना भी अतिक्रमण का एक छोटा रुप है जो आजकल आम बात हो गई है। इससे राहगीरों को तो तकलीफ होती ही है साथ ही मौहल्ले में पढ़ने वाले बच्चों, बुजुर्गों को कई कई घंटों तक तेज आवाज में बजने वाले संगीत से काफी परेशानी भी होती है । आयोजक किसी की परेशानी की चिंता किये बगैर, अपनी चंद घंटों की मौज मस्ती के लिये पूरी सड़क का निरंकुश मालिक बन जाता है । आयोजन के बाद झूठे दोने, पत्तल, प्लास्टिक के ग्लास इत्यादि कचरों को सडक पर ज्यों का त्यों छोड दिया जाता है। क्या यह कार्य अपराध या नियमों के उल्लंघन की श्रेणी में नही आता ?

अतः संबंधित विभाग को ऐसा कोई भी कार्य करता हुआ पाये जाने पर, कानूनसम्मत जुर्माना लगाकर आयोजकों को निर्धारित स्थान पर ही किसी भी प्रकार का आयोजन करने के लिये बाध्य करने की आवश्यकता है ।

Friday, December 11, 2009

जरा सोचिये

''हाल-बेहाल, चिट्ठियां खा रही है गायें'' ( दैनिक भास्कर, दिनांक 11/12/09) पढ़ा।

http://www.bhaskar.com/2009/12/11/091211015123_lots_cows.html


मैं सोचता था गायें केवल पोलिथीन ही खाती हैं ।

जिम्मेदार कौन ?

Wednesday, November 25, 2009

गुब्बारा

‘गुब्बारे को बताया उडनतश्तरी’ खबर ने मुझे दूसरे खतरनाक गुब्बारे के बारे मे सोचने को मजबूर कर दिया शायद जिसकी तरफ सरकार का कम ही ध्यान है, और वह है बढ़ती जनसंख्या का फूलता हुआ गुब्बारा ।

जब यह फूटेगा तो क्या होगा ?

Friday, November 13, 2009

अपेक्षा

किसी ने सच कहा है, बोया पेड़ आक का, आम कहां ते होये। आजकल टीवी चैनलों में फूहड़ और अश्लील कार्यक्रमों की भरमार है जिन्हें बच्चों को दिखाकर, उनसे सुसंस्कृत व्यवहार, बडों का आदर, सम्मान आदि की अपेक्षा करना बेवकूफी है ।

बापू का परिहास

यह बाल–स्वभाव ही है जो किसी बालक के पास कोई विशेष खिलौना नही होने पर वह उस खिलौने से ही नफरत करने का झूठा दिखावा करने लगता है / गणतंत्र दिवस से पहले, एक टीवी चैनल द्वारा बापू का परिहास करने से मुझे कोई आश्चर्य नही हुआ बल्कि परेशानी तो तब हुई जब बापू की टूटी मूर्ति और मूर्ति के आसपास कचरे के ढ़ेर वाले चित्र अखबार में देखा / अखबारों में छपे चित्र एक सच्चे देशभक्त की आत्मा को शूल की भांति चुभते हैं और इसका दर्द हर कोई नही समझ सकता/

जिन अंग्रेजों ने हमारे देश पर 200 साल तक राज किया उनके पास अगर कोई कमी थी तो सिर्फ बापू की / जिस तरह महाभारत के युद्ध में कृष्ण पांडवों के साथ थे ठीक उसी तरह आजादी की लडाई में बापू हमारे साथ थे और यदि अंग्रेजों के पास बापू होते तो ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नही होता / बस उनकी यही कमी उन्हें आज भी टीसती है जिसे वे कभी–कभार टीवी और अन्य माध्यमों के द्वारा व्यक्त करते रहते हैं/ ऐसा कौनसा विदेशी होगा जो नही चाहता होगा कि काश बापू उनके देश में पैदा होते/ हमारे देश में पैदा होकर बापू ने विदेशियों को गर्व करने से वंचित कर दिया/ अब हमारे द्वारा बापू की निरंतर उपेक्षा और अपमान होते देख विदेशी शायद बापू से गुस्से में पूछना चाहते होंगे कि भारत में पैदा होने से क्या मिला, यदि पैदा ही होना था तो विदेश क्या बुरा था ?

आईये हम विदेशियों की इस सोच को गलत साबित करें और वादा करें कि बापू का कभी अपमान नही होने देंगे /